Petrol Diesel Price 2025:तेल की कीमतों पर फिर मंडराने लगा है संकट! रूस-अमेरिका के तनाव से जेब पर पड़ सकता है सीधा असर
भाई अगर आप सोच रहे हो कि इस बार तेल की कीमतें अचानक क्यों खबरों में आ गई हैं, तो इसकी जड़ में है रूस और अमेरिका के बीच बढ़ता टेंशन।अब आप सोचेंगे – “यार वो तो हर महीने कुछ न कुछ चलता रहता है!”
बिलकुल! लेकिन इस बार बात थोड़ी सीरियस है, क्योंकि अमेरिका ने साफ तौर पर रूस को 10–12 दिन का अल्टीमेटम दे डाला है कि यूक्रेन से पीछे हटो वरना…!
और वो “वरना” है – 100% तक टैरिफ, यानी रूस से जो भी देश तेल खरीदेगा, उसे अमेरिका भारी टैक्स से दबा देगा। अब इसमें भारत का नाम भी आता है, क्योंकि हम तो रूस से सबसे ज़्यादा सस्ता तेल ले रहे हैं।
ANI रिपोर्ट में क्या बताया गया?
एनएस रामास्वामी जो वेंचुरा कमोडिटीज़ के हेड हैं, उन्होंने ANI से साफ कहा है कि
“ब्रेंट ऑयल की कीमतें अभी के 72 डॉलर से सीधी 80-82 डॉलर तक जा सकती हैं इस साल के अंत तक।”
मतलब सीधी बात – जेब ढीली होने वाली है।
भारत की दुविधा: रूस से सस्ता तेल या अमेरिका की नाराज़गी?
अब भारत जैसे देशों के लिए ये टेंशन और बड़ा हो जाता है –अगर हम रूस से तेल लेना जारी रखते हैं तो अमेरिका टैरिफ ठोक देगा, और अगर हम रूस से तेल नहीं लेते, तो वैकल्पिक बाजार से तेल महंगे दामों पर खरीदना पड़ेगा।
मतलब पेट्रोल-डीजल के रेट तो बढ़ेंगे ही।
नरेंद्र तनेजा की चेतावनी – “120 डॉलर तक जा सकता है तेल!”
एनर्जी सेक्टर के बहुत ही जाने-माने जानकार नरेंद्र तनेजा ने ANI से कहा कि: “अगर रूस को ऑयल सप्लाई सिस्टम से बाहर कर दिया गया, तो तेल की कीमतें 100 से 120 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं।”
अब सोचो, अगर ग्लोबल मार्केट में ये कीमत है, तो भारत में पेट्रोल 130–140 रुपए लीटर तक भी जा सकता है। मतलब बाइक चलाना भी सोचना पड़ेगा!
ओपेक+ कुछ नहीं कर पाएगा?
OPEC+ जैसे देश अभी भी लिमिटेड प्रोडक्शन पर काम कर रहे हैं, और उनके पास इतना रिज़र्व नहीं है कि रूस की सप्लाई को पूरी तरह कवर कर सकें। यानी अगर रूस हटता है, तो तेल की कमी आ जाएगी – और कमी का सीधा मतलब है कीमतों में आग।
क्या भारत तैयार है?
सच कहूं तो भारत के सामने दो रास्ते हैं:
- या तो अमेरिका को खुश रखने के लिए रूस से दूरी बनाए
- या फिर राष्ट्रहित में सस्ता तेल लेना जारी रखे, चाहे कुछ भी हो
सरकार की फिलहाल यही नीति दिख रही है कि सस्ता जहां से मिले, वहां से लो। और यही पॉलिसी आज तक हमारे पेट्रोल-डीजल को कुछ हद तक सस्ता बनाए हुए है।
मेरा निष्कर्ष – “भाई, बैकअप प्लान बना लो!”
अब जबकि ग्लोबल मार्केट इतना नाजुक हो गया है, तो हमें सिर्फ यह नहीं देखना चाहिए कि तेल अभी कितना है… बल्कि ये सोचना चाहिए कि कल क्या होगा?
सरकार को अब रिन्यूएबल एनर्जी, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, और इंटरनेशनल स्ट्रैटजिक रिज़र्व पर फोकस बढ़ाना होगा। नहीं तो अगली बार सिर्फ “कीमतें बढ़ीं” नहीं, बल्कि “तेल नहीं मिला” वाली नौबत आ सकती है।